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सनातन भारत की मूल प्रकृति

4 वेद, 4 उपवेद,18 पुराण, 18 उपपुराण, 24 प्रकीर्ण पुराण ग्रन्थ, दो महाकाव्य, 108 उपनिषद, हजारों स्मृतियाँ, लक्षाधिक आगम शास्त्र, करोड़ों ज्योतिष ग्रन्थ, सूत्र ग्रन्थ, नीति ग्रन्थ, बौद्ध, जैन, घोर अघोर समग्र आर्ष साहित्य में कायरता के लिए एक शब्द नहीं। सभी ने कर्म और पुरुषार्थ की ही प्रशंसा की है। किसी ने भी पलायन को धर्म नहीं कहा। किसी ने भी शस्त्रों की निंदा नहीं की। सभी ने कहा कर्म ही संचित होकर नियति का निर्माण करती है। वेद तुम्हे देवांश कहता है, उपनिषद तुम्हे देव बताते है,  काव्य ग्रन्थ तुम्हारे हृदय को ईश्वर का बिंब मानता है। तुम आकाश में आग लगा सकते हो। तुम पाताल को स्वर्ग बना सकते हो। तुम कर क्या नहीं सकते? फिर वह कौन है जो तुम्हे फुसलाता है और कहता है - तुम्हारा क्या था, जो खो गया। तुम्हारा क्या है, जो तुमने पा लिया। इस तरह के निराशावादी विचार हमारी संस्कृति के अंग नहीं। गीता कहती है - हे अर्जुन! मारे गए तो स्वर्ग मिलेगा। जीत गए तो राज्य भोगोगे। इसलिए हे कुंतीपुत्र! युद्ध का निश्चय करके उठो। पता नहीं हमारे बीच में निराशावादी नकली गीता कहाँ से आ गयी। मैं कहता हूँ, फाड़ कर ...