हिमालयसे संरक्षित एवं संवर्धित भूमि


भारतीय भूखण्ड की विशिष्टता का रहस्य हिमालय में निहित है। हिमालय विश्व का महानतम पर्वत है। भारत भूमि के उत्तर में फैली इस 2,400 किलोमीटर लंबी और 150 से 400 किलोमीटर चौड़ी पर्वत भूखला को प्रायः  "भारत भूमि के शीर्ष" की संज्ञा दी जाती है। विश्व के सर्वोच्च तीन पर्वत शिखर हिमालय के अङ्ग है। 29,028 फ़ीट ( 8,848 मीटर ) ऊँचे गोरीशंकर का स्थान विश्व में प्रथम है जिसे नेपाल में सागरमाथा और विश्व में माउंट एवरेस्ट के नाम से भी जाना जाता है और 28,250 फ़ीट (8,611 मीटर) ऊँचा कोगिर एवं 28,208 फ़ीट (8,596 मीटर) ऊंचा काशनजंगा जिसे कंचनजंगा के नाम से भी जाना जाता है जैसे शिखर क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर आते हैं। इनके अतिरिक 25,000 फ़ीट से अधिक ऊंचाई के प्रायः 50 अन्य शिखर हिमालय श्रृंखला में स्थित है । इस पर्वत शृंखला के की मध्य ऊंचाई 15,000 फ़ीट है। लंबाई , चौड़ाई और ऊँचाई में हिमालय विश्व में अतुलनीय है। परन्तु हिमालय की महत्ता मात्र इन आंकड़ों में नहीं है। 

भारतवर्ष के मानचित्र में हिमालय पर्वत अपने पूर्वी एवं पश्चिमी छोरों पर दक्षिण की ओर मुड़ती गोण श्रृंखलाओं के साथ ऐसा प्रतीत होता है मानो किसी बड़े - बूढ़े ने अपनी दोनों भुजाएँ फैलाकर इस भूमि को अपने वक्ष में समेट रखा हो। वस्तुतः पितास्वरूपी किसी बड़े-बूढ़े के समान ही हिमालय पर्वत भारत भूमि का अत्यन्त उदारता पूर्वक पोषण एवं संरक्षण करता रहा है । 
भौगोलिक दृष्टि से हिमालय जितना भारत का है उतना ही तिब्बत का भी है। परन्तु हिमालय को सारी उदारता भारत भूमि के लिये सुरक्षित है। अपने उत्तरी अथवा दक्षिणी विस्तारो पर बरसने वाले और दोनों ओर पिघलती हिम से निकलने वाले सम्पूर्ण जल को समेट कर हिमालय उसे भारतभूमि पर उलीचता चला जाता है। जिसके जल की एक बूंद भी दूसरी ओर नहीं जा पाती।

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