विपुल वर्षा का देश भारत

भारत में वर्षा का परिमाण एवं यहाँ की उर्वरा भूमि की पर्याप्त शस्य उत्पन्न करने की क्षमता मानसून पर निर्भर हैं। 'मानसून' अरबी शब्द 'मौसम' का अंग्रेज़ीकृत रूप है। भारत में इसे वर्षाऋतु कहा गया है। भारत में होने वाली कुल वृष्टिका 90% वर्षाऋतु के आसपास के तीन महीनों में बरसता है। इस सघन वृष्टि से देश के प्रायः समस्त भाग आप्लावित हो जाते हैं। 
वर्षा के इस प्राचुर्य से वंचित रहने वाले दो ही क्षेत्र हैं। पहला , सिन्धु का मैदान, जिसमें सिन्ध प्रदेश , राजस्थान , पंजाब , उत्तरपश्चिमी - सीमाप्रदेश और बलूचिस्तान के कुछ भाग सम्मिलित हैं और दूसरा, पूर्वी तटपर स्थित रामनाथपुरम् और शिवगंगा के आसपास के सुदूर दक्षिणी भाग। 

जलगर्भित पवनों को लाने और उनकी समस्त जलराशि भारत भूमि पर ही न्योछावर करवा देने में हिमालय - पर्वतकी विशेष भूमिका है। हिमालय के उत्तर में स्थित तिब्बतको तो इस विपुल जल राशिका किंचित भाग भी प्राप्त नहीं हो पाता। भारतीय भूखण्ड में वार्षिक वृष्टि की कुल मात्रा 105 सेंटीमीटर है। यह मात्रा पर्याप्त बड़े आकार के विश्व के किसी भी भूखण्ड की अपेक्षा अधिक है। 
वर्षा से भारत भूमि पर प्रतिवर्ष 45 खरब घनमीटर जल प्राप्त होता है। अमरीकी संयुक्तराज्य का क्षेत्रफल भारत से ढाई गुणा है, परन्तु वहाँ पड़ने वाले जलकी कुल मात्रा भारत के प्रायः समान ही है और प्राकृतिक सम्पदा की दृष्टि से संयुक्त राज्य अमरीका को विश्वके समृद्धतम क्षेत्रों में से एक माना जाता है। चीन का क्षेत्रफल अमरीका से भी कुछ अधिक है, वहाँ प्रायः 60 खरब घनमीटर जल बरसता है। इस प्रकार वहाँ वार्षिक वर्षा की कुल मात्रा केवल 63 सेंटीमीटर ही है , जो भारत की माध्य वार्षिक वृष्टि का दो - तिहाई मात्र है। 
भारत में वर्षभर में प्राप्त होनेवाले जल में से प्रायः साढ़े चार खरब घनमीटर जल भूमिगत भण्डारों का पुनर्भरण करता है। भारतकी नदियों में प्रतिवर्ष 20 खरब घनमीटर जल प्रवाहित होता है। चीन की नदियों का कुल वार्षिक प्रवाह 26 खरब घनमीटर है और अमरीका की नदियोंका 15 खरब घनमीटर। 
इस प्रकार वर्षा के रूप में भारत को प्राप्त होने वाले और भारत की नदियों में प्रवाहित होनेवाले जल की मात्रा विश्व के सर्वाधिक सम्पन्न और भारत से कहीं अधिक विशाल क्षेत्रों के समतुल्य है ।

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