भारत की भौगोलिक संपदा

    उर्वर तटीय मैदान और दक्षिणीयपथीय पठार 



सिन्धु - गंगा मैदान भारत के भौगोलिक क्षेत्रके पाँचवें भाग और कृषि योग्य क्षेत्रके 2/5 वें भागपर फैला है। इसके अतिरिक्त भारत का प्रायद्वीपीय भाग पूर्वी और पश्चिमी तटीय मैदानों से घिरा हुआ है । मैदान भी नदियों की मिट्टीसे निर्मित हैं और अति उर्वर हैं । 

पश्चिमी तटीय मैदान गुजरात के अपेक्षाकृत विस्तृत क्षेत्र से आरम्भ होता है और दक्षिण की ओर जाते हुए संकरा होता जाता है। गुजरातके दक्षिण में यह मैदान कोंकण के नाम से जाना जाता है और आगे दक्षिण में इसे मलबार कहते हैं । कोंकण एवं मलबारके तटीय मैदानों की माध्य चौड़ाई 70 किलोमीटर है। ये दोनों मैदान अपनी विशिष्ट उर्वरता के लिये विख्यात हैं।

पूर्वी तटीय मैदान उत्तर में गंगा के नदी मुख से प्रारम्भ होकर दक्षिण में कलिंग, आन्ध्र और चोलमण्डल क्षेत्रों में फैला हुआ है। यह मैदान पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षा अधिक चौड़ा है।  दक्षिणी पठार से पूर्व की ओर बहनेवाली चार महान् नदियों , महानदी , गोदावरी , कृष्णा एवं कावेरी के अत्यन्त उर्वर एवं विस्तृत नदीमुख इस मैदान में पड़ते हैं।

पूर्वी एवं पश्चिमी तटीय मैदान 4 करोड़ हेक्टेयर कृषियोग्य भूमि से सम्पन्न हैं । सिन्धु - गंगा मैदान और इन दो तटीय मैदानों के विस्तार में भारतवर्ष का एक - तिहाई भाग और भारत के कृषिक्षेत्र का दो तिहाई भाग आ जाता है । जीवनदायिनी नदियों द्वारा लायी गयी मृदा से निर्मित यह सम्पूर्ण क्षेत्र अत्यन्त उपजाऊ है । 

भारत की शेष प्रायः समस्त कृषियोग्य भूमि दक्षिणी पठार में पड़ती है । यह प्रायद्वीपीय पठार 1,000 से 2,000 फ़ीट ऊँचा है और अनेक नदी घाटियों एवं पहाड़ियों में विभाजित है। पश्चिम को बहने वाली नर्मदा और तपती एवं पूर्वको बहनेवाली महानदी , गोदावरी , कृष्णा एवं कावेरी नदियाँ इस पठार का सिंचन करती हैं। पठार के उत्तर - पश्चिमी भाग की काली मिट्टी अत्यन्त उपजाऊ है। यह मिट्टी कपास उगाने के लिये विशेष उपयुक्त मानी जाती है।

 नदीघाटियों की मिट्टी तो उर्वर है ही बल्कि भारत भूमि जैसे किसी विस्तृत भूखंड में ऐसी अखंडित एवं विपुल उर्वरता को विश्व मे कहीं अंयत्र कल्पना भी नहीं कि जा सकती। इसलिए भारतवर्ष विश्वभर का भरण करने में सक्षम है।


edited by: Patanjali Mishra

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