भारत की सांस्कृतिक संपदा

पतंजलि मिश्र 



विश्व की कदाचित् दो ही सभ्यताएँ हैं जो अतिप्राचीन कालसे अबतक अनिर्बाध प्रवाहित होती चली आ रही हैं। इस दृष्टिसे हमारे समकक्ष दूसरी सभ्यता चीन की है । अपने इस दीर्घ इतिहास के प्रायः समस्त कालों में भारतीय ही नहीं भारतके बाहर से यहाँ आनेवाले आक्रान्ता और पर्यवेक्षक भी भारत को अत्युच्च भौतिक समृद्धि एवं उससे भी कहीं ऊँची आध्यात्मिक समृद्धि से सम्पन्न विशिष्ट भूमिके रूपमें देखते रहे हैं । गत कुछ शताब्दियोंके परकीय शासनके कालमें भारतके लोग अपनी इस विशेषता को भूल बैठे हैं।

अंग्रेजी प्रशासकों द्वारा गढ़े गये कपोलकल्पित इतिहासको सत्य मानकर वे अपनी भूमि एवं अपनी सभ्यताको महत्ताको नकारने लगे हैं। भारतके लोग अपने मन में ही अपने गौरव से वञ्चित हो बैठे हैं।



अपनी सहज स्वाभाविक भौतिक एवं आध्यात्मिक समृद्धिको पुनः प्राप्त करनेके लिये हमें अपनी नैसर्गिक एवं सभ्यतागत सम्पदाओं का पुनः स्मरण करना होगा। अपनी सहज समृद्धि को स्मृति लौट आयेगी तो उस समृद्धि को पुनः प्राप्त करने के सम्यक् प्रयास करने का संकल्प एवं बल भी हममें आ ही जायेगा । इस पेज के माध्यम से और इससे जुड़ी प्रदर्शनी में भारतवर्ष को सहज सम्पदाओं को स्मरण करने का किश्चित् प्रयास किया गया है।


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