पुण्यसलिला माँ गंगा

सिन्धु ,गंगा और ब्रह्मपुत्रकी गणना विश्व की महानतम नदियों में होती है। इनमें गंगा का अपना विशिष्ट स्थान है। पुण्यसलिला गंगा की भौतिक एवं आध्यात्मिक  जीवनशक्ति का स्रोत है।
महागङ्गोत्री से गङ्गासागर तक गङ्गा के प्रवाह का विस्तार 2,525 किलोमीटर है। गङ्गा नदी में प्रति सेकेंड 38,000 घनमीटर जल प्रवाहित होता है। प्रवाह की मात्रा के मापदण्ड पर गङ्गा विश्व की तीसरी सबसे बड़ी नदी है । केवल दक्षिण अमरीका की अमेज़न (1,000,00 घनमीटर प्रतिसेकेंड ) और अफ्रीकाकी कोंगो नदी (43,000 घनमीटर प्रति सेकेंड ) का प्रवाह गङ्गा से अधिक है। गङ्गा प्रतिवर्ष 36 करोड़ टन मृदा हिमालय से लाकर भारत भूमि को उर्वर करती है। मृदा की मात्रा के मापदण्ड पर केवल चीन को हुआंगहे एवं चांगजिआंग नदियाँ और अमरीका की मिस्सीसिप्पी नदी गङ्गासे आगे हैं। हुआंगहे तो कीचड़ की ही नदी है , इसीलिये इसे पीली नदी भी कहा जाता है। 
गङ्गा मात्र आँकड़ों के कारण महान् नहीं है । गङ्गानदी अत्यन्त मन्थर गति से भारत के मर्म प्रदेश से प्रवाहित होती हुई यहाँ की भूमिको भलीभाँति और अत्यन्त गहराई तक जल एवं मृदा से समृद्ध करती चली जाती है। गङ्गा के इस मन्थर जीवनदायी प्रवाह में ही भारत भूमि की विपुल उर्वरता का रहस्य निहित है। भारत भूमिका मर्मप्रदेश वस्तुतः गङ्गा से ही जन्मा है और अनादि काल से गङ्गा इसका पोषण करती चली आ रही है। 
पण्डित जवाहरलाल नेहरू की गणना भारत के विशिष्ट भूगोल की पावनता के प्रति विशेष संवेदनशील व्यक्तियों में नहीं होती। परन्तु गङ्गा की महानता से वे भी विचलित हुए थे। गङ्गा के विषय में वे लिखते हैं कि " गङ्गा वस्तुतः ‘ भारत की नदी ' है । इतिहास के उषा काल से गङ्गा भारत के हृदय को छूती रही है । अगणित कोटि लोग इसके तटों की ओर आकृष्ट होते रहे हैं। अपने उद्गमस्थलसे सागरतक गङ्गा की गाथा ... 
भारतीय सभ्यता एवं संस्कृतिकी गाथा ही है । " अन्य देश अपनी महान् नदियों को गङ्गा की संज्ञा देते हैं। श्रीलंका के लोग अपनी महानतम नदी को ' महावेली गङ्गा ' कहते हैं । हिन्दचीन की मेकांग नदीका नाम ' महागङ्गा ' का ही अंग्रेज़ीकृत नाम के रूप में पहचान दिलाई है।

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