धूप और ऊष्मा का देश
हिमालय उर्वरा मृदा और जीवनदायी जल से भारत-भूमिका पोषण तो करते ही हैं साथ ही प्रचुर शस्य के उत्पादन के लिये अनिवार्य ताप एवं ऊष्मा का संरक्षण भी करते हैं। भारतीय भूखण्ड पृथिवी के उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र में नहीं आता। समस्त भारत भूमि भूमध्यरेखा के उत्तर में स्थित है और इसका 60 प्रतिशत भाग कर्क रेखा के ऊपर है।
इस भौगोलिक स्थिति के अनुरूप भारत-भूमि के अधिकतर भाग को शीतोष्ण प्रदेश के अन्य देशों की भाँति अत्यन्त ठण्डा होना चाहिये। परन्तु उत्तर में खड़ी हिमालय की अत्युच्च प्राचीर उत्तर से आने वाली हिमानी पवनों को भारत के बाहर रोक देती है और उष्णकटिबन्धीय समुद्रों से उठने वाली तप्त एवं सिक्त पवनों को भारत भूमि से बाहर नहीं जाने देती।
यह विशिष्ट भौगोलिक संरचना भारत भूमि के जल-वायु को उष्ण एवं आर्द्र बनाये रखती है। इस प्रकार भारत वर्ष सघन शस्यों (खेत मे उपजने वाला अन्न) के उत्पादन एवं विविध रूपों में जीवन के प्रफुल्लित होने के लिये पृथ्वी पर आदर्श स्थान-सा बन गया है। सूर्य-भगवान की भारत भूमि पर विशेष कृपा है। इस विस्तृत भूखण्ड के प्रायः प्रत्येक भाग पर वर्ष में प्रतिदिन धूप चमकती है । अत: सब स्थानों पर सब ऋतुओं में शस्य (खेत मे उपजा अन्न) की वृद्धि होती रहती है।
भारत के सब भागों में और विशेषतः नदियों की मृदा से सम्पन्न विस्तीर्ण मैदानों में वर्ष में दो शस्य उगाना सम्भव है, प्रयास पूर्वक वर्ष में तीन शस्य भी लिये जा सकते हैं। विश्व में इतने बड़े विस्तार का ऐसा कोई अन्य भूखण्ड नहीं है जहाँ वर्ष में एक से अधिक शस्य उगाना सम्भव होता हो। चीन के उर्वर पूर्वतटीय मैदानों के अधिकतर भाग में वर्ष में एक ही शस्य का उत्पादन हो पाता है, इन मैदानों के उष्णकटिबन्ध में पड़ने वाले कतिपय दक्षिणी भागों पर ही दो वर्षों में पाँच शस्य ले पाना सम्भव होता है।
भारत में तो प्रायः समस्त स्थानों पर ऐसा करना सम्भव है। भारत वर्ष में भूमि, हिमालय, वर्षा एवं सूर्य को उच्च सम्पदाओं का कुछ ऐसा अनुपम सुयोग बना है कि इस भूमि ने विश्व के सर्वाधिक समृद्ध कृषि क्षेत्र का रूप ले लिया है। इसीलिये इस भूमि को शस्यश्यामला का विशेषण प्राप्त है। अपनी इस सहज सम्पदा के बलपर यह भूमि सम्पूर्ण विश्व का भरण करने में सक्षम है। इसीलिये इसे भारत कहा जाता है।
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