भारत की समृद्धि पर विश्व स्तब्ध था

असीम व्यापकता एवं गाम्भीर्य वाली नदियाँ, दुर्लभ उर्वरता से सम्पन्न विस्तीर्ण भूमि, सदा चमकती धूप, असाधारण बल बुद्धि एवं वैविध्य से युक्त असंख्य पशु - पक्षी और स्वस्थ स्वत्वसम्पन्न गरिमामय अपार जन-समुदाय-प्राचीन काल से बाहर के लोग भारत की ऐसी ही छवि देखते रहे हैं। इसी छवि का चित्रण भारत-सम्बन्धी प्रायः समस्त बाह्य वृत्तान्तों में मिलता है। 
भारतीय सभ्यता के स्रोत ग्रन्थों में यही गुण किसी सभ्यता की समृद्धि के मूल लक्षण माने गए हैं। भारत में पहुँचने वाले विदेशी लोग यहाँ की भूमि, नदियों, धूप, पशु-पक्षियों और लोगों की अपार सहज सम्पदा एवं व्यापकता को देख कर सर्वदा स्तब्ध होते रहे हैं। यूनानी योद्धा सिकन्दर के युद्धवृत्तों की भाषा एवं भाव में सिकन्दर के भारत वर्ष की परिधि में पहुँचते ही अकस्मात् आश्चर्य जनक परिवर्तन दिखाई देता है। 
सिकन्दर अपने समय के विश्व की बड़ी सभ्यताओं के व्यापक क्षेत्र को लाँघकर भारत पहुंचा था। परन्तु उस समय के यूनानी वृत्तों से ऐसा प्रतीत होता है मानो वह तब तक किन्हीं जनविरल विस्तारों से ही निकलता आया हो। भारत भूमि के निकट पहुँचते ही उसे शौर्यवान् प्रजाओं से निष्ठा पूर्वक संरक्षित अनेक जनसंकुल राज्यों से अभिमुख होना पड़ता है और आख्याता की मनोस्थिति अचानक बदल जाती है। 
अभी तक अन्यों के प्रति उपेक्षा का अभिमानी भाव रखने वाला वृत्तकार अब भारत भूमि की उर्वरता, यहाँ की नदियों की महत्ता, पशु-पक्षियों की बलबुद्धि तथा अपार जन-समुदाय के असीम शौर्य के प्रति श्रद्धानत सा हुआ दिखने लगता है । मेगस्थनीज़ , प्लीनी , स्त्राबो और अन्य यूनानी व रोमन लेखकों के भारत - सम्बन्धी वर्णनों में भारत की सम्पदा के प्रति श्रद्धा एवं भय का यह भाव स्पष्ट झलकता है। 
विख्यात यूनानी इतिहासविद् हीरोडोटस ‘ज्ञात विश्व के सर्वाधिक जनाकीर्ण राष्ट्र' के रूपमें भारत का उल्लेख करता है। यूनानी एवं रोमन वृत्त कारोंके बहुत पश्चात् चीनी यात्री फाह्यान एवं ह्यूनत्सांग भारत आये। उन दोनोंके यात्रावृत्त भारत भूमि एवं भारतीयों की सहज समृद्धि एवं सामाजिक अनुशासनसे अभिभूत दिखाई देते हैं । 

मध्ययुगीन अरब पर्यवेक्षक और आधुनिक काल के प्रारम्भ में आने वाले यूरोपीय यात्री भी भारत के अपार जनसमूह और असाधारण - उर्वरता का वर्णन करते हैं। निस्तेज एवं दरिद्र - भारत - भूमि और वैसे ही निस्तेज एवं दरिद्र भारतीय लोगों एवं पशुओं की छवि औपनिवेशिक शासकों एवं अध्येताओं की दुष्कल्पना मात्र है।

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