भारत भूमि एक अभेद्य दुर्ग-सी है

प्रकृति ने भारत भूमि को दुर्लभ उर्वरता एवं अन्य सम्पदाओं से कृतार्थ तो किया ही है , इस भूमि को किसी अभेद्य दुर्ग जैसी सुरक्षित भौगोलिक संरचना से मण्डित भी कर दिया है। हिमालय पर्वत की उच्च प्राचीर भारत भूमि की ओर बढ़ने के किसी विदेशी दुःसाहस को सर्वदा प्रतिरोधित करती रही है। 
उत्तर में हिमालय के उत्तुङ्ग शिखर हिमाच्छादित रहते हैं , किसी सम्भावित आक्रान्ता के लिये उन्हें लाँघ पाने का प्रश्न ही नहीं उठता। उत्तर-पूर्व में भारी वर्षा होती है , जिससे इस क्षेत्र में बर्मा (म्यांमार) व भारत के मध्य पड़ने वाली तीखी पर्वतीय ढलाने व गहरी घाटियाँ सघन जंगलों से ढक गयी हैं और इनमें तीक्ष्ण प्रवाह वाली असंख्य सरिताएँ बहती हैं। 
उत्तर पश्चिम में ऊँची पर्वत श्रेणियाँ तो हैं, परन्तु वर्षा की न्यूनता के कारण सघन वनस्पति का कवच यहाँ नहीं है। इस दिशा में स्थित कतिपय ऊँचे पर्वतीय मार्गों से भारत में प्रवेश सम्भव है। परन्तु भूमि की अनुर्वरता के कारण यहाँ जनसंख्या विरल है और इस क्षेत्र से पार पाना अत्यन्त कठिन है। अतः इस उत्तर - पश्चिमी सीमा की रक्षा करना अपेक्षाकृत सरल रहा है। दक्षिण भारत भूमि तीन ओर से समुद्र से संरक्षित है। 
भारत के समुद्र तट पर प्राकृतिक पत्तन प्रायः नहीं जैसे हैं और भारतीय तट से सहस्रों मील दूर तक और कोई भूखण्ड नहीं पड़ता, दूर-दूर तक गहन समुद्र ही व्याप्त है। इस दिशा से विदेशी आक्रान्ताओं का आना आधुनिक काल तक प्रायः असम्भव रहा है। अभेद्य हिमालय और अलंध्य समुद्र ने मिलकर भारत भूमि को शेष विश्व से प्रायः पृथक् ही कर दिया है। भारत अनन्तकाल तक अन्यों के लिये अगम्य रहा है। इसीलिये सिकन्दर के साथ आने वाले यूनानी अध्येता अधिकार पूर्वक यह कह सकते थे कि वे एक ऐसे भूखण्ड में पहुँच गये हैं जहाँ उनसे पहले कदाचित् ही कोई पहुँचा हो। उनका यह दृढ़ विश्वास था कि भारत वर्ष अन्यों से कभी विजित नहीं हुआ और अन्यों पर विजय पाने की कभी कोई आकांक्षा उसने नहीं रखी। 
अकल्पनीय प्राकृतिक अभेद्यता से संरक्षित अपनी विस्तीर्ण एवं उर्वर भूमि पर हम सहस्राब्दियों तक सुरक्षित एवं समृद्ध जीवनयापन करते रहे और इस प्रकार हमने अपनी असाधारण परिष्कृत सभ्यता का विकास किया। यह सभ्यता अपनी प्राचीनता एवं भव्यता में अतुलनीय है। भौतिक बाहुल्य एवं आध्यात्मिक गाम्भीर्य में भारतीय सभ्यता की असाधारण उपलब्धियों की समानता अन्यत्र असम्भव है।

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