समाजनीति और भारत
राष्ट्र निर्माण के कार्य में प्रमुख महत्त्व लोगों के उत्साह एवं निष्ठा का ही होता है। राष्ट्र के लोग जब आत्मविश्वास एवं दृढ़ संकल्प के साथ अपने किसी लक्ष्य की ओर चल निकलते हैं तो उस लक्ष्य तक पहुँचने के लिये समुचित साधनों , तकनीकों एवं व्यवस्थाओं आदि का सृजन तो वे सहज ही करते चले जाते हैं ।
बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में महात्मा गाँधी ने भारतवर्ष में ऐसे ही दृढ़ संकल्प एवं आत्मविश्वास का संचार किया था और तब भारत के लोगों ने अपनी समस्त शक्ति को सहेजकर अपने - आप को स्वतन्त्रताप्राप्ति के महान् कार्य में लगा दिया था । उस संकल्प एवं विश्वास के बलपर हम न केवल अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हुए , अपितु अपने उस अभूतपूर्व स्वतन्त्रता - संग्राम को सम्पन्न कर हमने सम्पूर्ण विश्वको अनेक विलक्षण विचारों एवं विधाओं से समृद्ध किया।
स्वतन्त्रताप्राप्ति के पश्चात् हमने स्वतन्त्रता - संग्राम के दिनों के उस दृढ़ संकल्प एवं अविचल आत्मविश्वास को कहीं खो दिया है। दीर्घ राजनैतिक दासता ने हमें वैचारिक एवं व्यावहारिक तमस के गहन अन्धकार में धकेल दिया था। महात्मा गाँधी जैसे अवतार - पुरुष के नेतृत्व में हम कुछ समय के लिये उस तमस से उबर पाये। उनके जाने के पश्चात् हम सहसा पुनः उसी तमस में डूब गये हैं। पिछले पचास - साठ वर्षों में हम सब प्रकार के ओज एवं उत्साह से विहीन जीवन ही जीते आये हैं।
आज के विश्व की परिस्थिति को समझने और इस परिस्थिति में अपनी राष्ट्रीय अस्मिता को प्रतिष्ठापित करने के लिये आवश्यक उद्यम करने के विषय में हमने कोई विचार नहीं किया। अपनी सांस्कृतिक गरिमा के अनुरूप विश्व में अपना कोई स्थान बनाने , अपनी कोई स्वतन्त्र दिशा स्थापित करने का कोई प्रयास हमसे नहीं हुआ ।
स्वतन्त्र राष्ट्रीय जीवन के इन साथ सत्तर वर्षों में हम तो अन्यों का अनुकरण करते हुए समय ही काटते आये हैं। अन्तरराष्ट्रीय हाट - बाजारों से उठनेवाली विभिन्न उत्पादों के समक्ष झुकते हुए , समय - समयपर बह रही अन्तरराष्ट्रीय पवन के साथ अपने को घुमाते हुए , हम मात्र जीवन यापन ही करते आये हैं ।
Very good
ReplyDeleteधन्यवाद मित्र
DeleteVery nice
ReplyDeleteThanksLot
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