समस्त सृष्टि के साथ सामञ्जस्य भारत का मूल भाव है
भारत भूमि को अतुलनीय प्राकृतिक सम्पदा एवं उर्वरता प्राप्त है और यह विपुल समृद्धि विश्व की सर्वाधिक अगम्य प्राकृतिक सीमाओं में सुरक्षित है। भारतवर्ष का व्यापक विस्तार है , परन्तु यह व्यापकता इतनी सुगठित है कि भौगोलिक दृष्टि से यह देश किसी अलौकिक द्वीप - सा ही दिखाई देता है।
इस अत्यन्त सुरक्षित एवं अत्यन्त उर्वरा भूमि पर भारत के लोग अनादिकाल से बाह्य आक्रमण एवं आन्तरिक अभाव के भय से मुक्त होकर सहज समृद्ध जीवनयापन करते आये हैं। दीर्घकाल के इस सहज समृद्ध जीवन से इस भूमि पर सर्वत्र व्याप्त एक समरस सभ्यता विकसित हुई है। भारत की इस समरस सभ्यता का आश्रय स्थान सनातन धर्म में है। अपने भव्य , समृद्ध एवं अभेद्य भूखण्ड में रहते हुए भारतीयों ने अपने आप में , प्रकृति में और वस्तुतः समस्त सृष्टि में सामञ्जस्य का दर्शन किया है।
सृष्टि के किसी भावमें वैपरीत्य की कल्पना भी उन्होंने नहीं की। सनातन धर्म के गर्भ में सृष्टि के समस्त भावों के प्रति अत्यन्त सम्मान एवं श्रद्धा का भाव ही प्रतिष्ठित है। समस्त सृष्टि के प्रति सम्मान एवं श्रद्धा का भाव रखना और समस्त सृष्टि के मध्य सामञ्जस्य बनाये रखते हुए जीने की आकांक्षा करना , यही सनातन धर्म और भारतीयता का विशिष्ट लक्षण है।
Thanks for nice and elaborate picture of our country.
ReplyDeleteThanks lot
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ReplyDeleteआभार मित्र
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