शीर्ष पर प्रतिष्ठित राजा धर्म का संरक्षक है

भारतीय समाज कुटुम्ब , ग्राम , जाति एवं सम्प्रदाय जैसे अपने सहज संघटकों के माध्यम से स्वशासित है। इस स्वयंभू एवं स्वतन्त्र सार्वजनिक नीति के शीर्ष पर स्थित राजा के दो ही मुख्य कर्त्तव्य हैं। पहला , यह सुनिश्चित करना कि समाज के सब सहज संघटक एवं संस्थान पारस्परिक सामञ्जस्य बनाये रखते हुए अपने - अपने अधिकार क्षेत्रों में अपने - अपने कार्यों का समुचित सम्पादन करने में सक्षम बने रहें। 
दूसरा , बाह्य आक्रमण से समाज की रक्षा करना । राजा बाहर के लोगों को समाज का बलशाली विभीषण रूप दिखाता है । अपने समाज की ओर अभिमुख होते ही वह सौम्य हितचिन्तक का रूप धारण कर लेता है। समाज के सन्दर्भ में भारतीय राजा को विधिनियमन का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। उसका कर्त्तव्य धर्म का विधान करना नहीं अपितु समाज के संघटकों के सहज अनुशासन की , उनके पूर्वप्रतिष्ठित देश-धर्म , जाति-धर्म एवं कुल-धर्म आदि की रक्षा करना है। 
भारतीय सभ्यता में राजा से धर्म एवं प्रजा के संरक्षण के अतिरिक्त लोकरञ्जन की भी अपेक्षा की गई है। अपनी समस्त प्रजा को प्रसन्न रखना , उनका रंजन करना , किसी भारतीय राजा के लिये अनिवार्य ही है। राजा शब्द को व्युत्पत्ति राजत्व के रजक पक्ष से ही है। भारत आने वाले प्रारम्भिक ब्रिटिश पर्यवेक्षकों के अनुसार भारतीय राजा लोक - रञ्जन के अपने कर्त्तव्य को इतनी गम्भीरता से लेते थे कि वे प्रायः अपनी प्रजा से भयभीत - से दिखाई देते थे। बाह्य आक्रमण से संरक्षण एवं समाज के सहज संघटकों में निहित धर्मो के सम्यक् पालन की व्यवस्था करने के साथ - साथ भारतीय राजा को साधनसम्पन्न समर्थ गृहस्थ की भूमिका का निर्वाह भी करना होता था। 
इस भूमिका में समस्त प्रजा एवं अपने राज्य के समस्त चराचर के सम्यक् भरणपोषण का उत्तरदायित्व राजा अपने पर लेता था। महाभारत में युधिष्ठिर को राजधर्म का उपदेश देते हुए भीष्म पितामह कहते हैं कि जिनका भरण करने वाला अन्य कोई न हो उन सबका भरण वह करे , और अपने पर सीधे निर्भर अपने भृत्यों के सुख - दुःख का अन्वीक्षण करते रहने का उत्तरदायित्व तो उसका है ही । 

अभृतानां भवेद् भर्ता भृत्यानामविवेक्षकः 

भारतीय राजा अपने राज्योंमें संविभाजन एवं आतिथ्यके संस्थानोंकी स्थापना एवं व्यवस्था सर्वदा करते आये हैं । भारतीय इतिहासके हर्षवर्धन जैसे अत्यन्त सम्मानित राजा तो नियमित अन्तरालपर अपनी जन कर अपने पूरे कोष को रिक्त ही कर देते थे।

Comments

  1. आपकी दी हुई जानकारी पढ़कर प्रसन्नता हुई, समय के परिवर्तन के साथ साथ मतलब और पर्याय भी बदल गया आज की तारीख में के बारे में अगर कहना हो तो राज तत्व का मतलब यह हुआ समस्त नागरिकों का बनाया हुआ एक संगठन जो समाज को और संसार के संचालन में बराबर का सहयोग देता हूं ऑफिस का गिनी में राजा के प्रशासन अनुशासन द्वारा होता है

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

भारतकी अन्य महान नदियाँ

हिमालयसे संरक्षित एवं संवर्धित भूमि

भारत का प्राचीन वैभव