रामराज्य

 

सार्वजनिक नीतिव्यवस्था की भारतीय अवधारणाओं के अनुरूप संगठित राज्य जिसमें समाज के समस्त सहज संघटक बिना किसी व्यवधान के अपने - अपने अधिकार - क्षेत्र में अपने - अपने कार्य का सम्यक् सम्पादन करने में समर्थ हों और जिस राज्य में समाज के सहज संघटकां के पूर्व प्रतिष्ठित अनुशासन एवं धर्म की रक्षा होती हो , ऐसे राज्य को रामराज्य की संज्ञा दी गई है। 
ऐसे राज्य में प्रकृति सौम्य रूप में अवस्थित रहती है, सब कुछ सुव्यवस्थित होता है , सब प्राणी स्वस्थ होते हैं, सब प्रसन्न होते हैं, सबको समुचित भरण-पोषण प्राप्त होता हैं। महाकवि वाल्मी कि रामायण के प्रारम्भ में ही भावी रामराज्य का चित्रण करते हुए लिखते हैं - श्रीराम के राज्य में सब लोग प्रसन्न एवं सुखी होंगे। सब पुष्ट एवं सन्तुष्ट रहेंगे। सब धर्म में प्रतिष्ठित होंगे। सब सर्वदा स्वस्थ रहेंगे, किसी प्रकार को कोई व्याधि किसी को नहीं सतायेगी। कभी किसी को दुर्भिक्ष का कोई भय नहीं रहेगा। 
कोई पिता पुत्रमरण का दु : ख नहीं झेलेगा। कोई स्त्री विधवा नहीं होगी। सब सदा पतिव्रत में निष्ठ रहेंगी। अग्नि से कोई अनिष्ट नहीं होगा। कोई जीव जल में नहीं डूबेगा। किसी प्रकार के ज्वर अथवा वात का किंचित भी भय नहीं रहेगा। किसी को भूख के विषय में चिन्तित नहीं होना पड़ेगा। कभी कहीं कुछ चुराया नहीं जायेगा। नगर और राष्ट्र धनधान्य से परिपूर्ण होंगे। सब सदा प्रसन्न एवं सुखी होंगे। रामराज्य में मानो सतयुग ही पुनःस्थापित हो जायेगा।

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