विपुल कृषि उपज की भूमि


भारत भूमि को विपुल प्राकृतिक उर्वरता , प्रचुर जल एवं असीम धूप प्राप्त हुई है। भारत के लोगों ने प्रकृति की इस विशिष्ट अनुकम्पा को कृतज्ञता पूर्वक स्वीकार किया है। अत्यन्त प्राचीन काल से ही वे इस प्राकृतिक प्राचुर्य का समुचित नियोजन करने के लिये कृषिके विभिन्न क्षेत्रों में उच्चतम दक्षताएँ विकसित करने को कृतसंकल्प रहे हैं। 
चौथी शताब्दी ईसापूर्व के यूनानी योद्धा सिकन्दर से लेकर अठारहवीं ईसवी शताब्दी के प्रायः अन्त के यूरोपीयो तक भारत में आनेवाले प्रायः सब पर्यवेक्षक भारतीय कृषकों की उपज के बाहुल्य को देखकर स्तब्ध होते रहे हैं। हल चलाना , खाद देना , सिञ्चाई करना , बीजों का चयन , शस्यों का आवर्तन , भूमि परती रखना जैसी कृषि - सम्बन्धी समस्त विधाओं में भारतीय कृषकों की परिष्कृत तकनीकों से वे प्रभावित हुए हैं। कृषि के विविध कायाँ के लिये भारत के विभिन्न भागों में विकसित सादे - सरल तथापि पूर्णतः कार्यक्षम उपकरणों ने उन्हें विस्मित किया है। 
उपलब्ध ऐतिहासिक स्रोत प्रमाणित करते हैं कि प्रायः अर्वाचीन काल तक भारतीय विश्व के सर्वोत्तम कृषक रहे हैं। विभिन्न कालों के शिलालेखों एवं बाह्य पर्यवेक्षकों के वृत्तान्तों में भारत के प्रायः सब भागों में आज की तकनीकों से सम्भव सर्वाधिक कृषि उपज के समकक्ष उपज होने के उल्लेख मिलते हैं।
 भारत भूमि की सहज उर्वरता को प्रचुर शस्यों में फलीभूत करने की भारतीय कृषकों को इस क्षमता से ही भारत भूमि शस्यश्यामला बन पाई है। उपनिषद् की शिक्षा है - "अन्नं बहु कुर्वात । तव्रतम् । अत्रबाहुल्य का सम्पादन करो, यह व्रत है । भारत ने अत्यन्त निष्ठापूर्वक इस व्रत का निर्वाह किया है ।"

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

हिमालयसे संरक्षित एवं संवर्धित भूमि

भारतकी अन्य महान नदियाँ

भारत का प्राचीन वैभव