तंजावुर का धर्मराज्य


तंजावुर के राजा सरफोजी महाराज ने सन् 1801 ईसवी में तंजावूर सभा में आरोपित ब्रितानी रेजीडेंट के नाम एक पत्र लिखकर ब्रितानी प्रशासकों को अपने राज्य के अन्न क्षेत्रों के कामकाज एवं सहज भारतीय व्यवस्था में इन संस्थाओं के महत्त्व से अवगत करवाने का प्रयास किया। अन्नक्षेत्र के लिये तमिल शब्द ' छत्रम् ' है।
 इन छत्रों का सजीव चित्रण करते हुए सरफोजी महाराज लिखते हैं मैं आपको इन छत्रों से प्रवाहित होने वाले पुण्य कार्यों के स्वरूप एवं विस्तार से अवगत करवा दूं- यहाँ आनेवाले सब यात्री , ब्राह्मण से लेकर परया हरिजन तक सब जातियों के जोगी , जंगम , अतीत , बैरागी आदि विभिन्न रूपों में आनेवाले सब लोग , यहाँ पहुँचने पर पके चावल का भोजन पाते हैं। उनमें से जो पका अन्न ग्रहण नहीं करते उन्हें विभिन्न आवश्यक द्रव्यों सहित कच्चा चावल दिया जाता है। 
पके व कच्चे अन्न का यह वितरण आधी रात तक चलता रहता है और तब घंटी बजाकर घोषणा की जाती है कि जिस किसी को तबतक भोजन प्राप्त न हुआ हो वह आकर अपने भाग का अन्न ले जाये। प्रत्येक छत्र में चार वेदों के अध्ययन के लिये एक - एक आचार्य , एक सामान्य शिक्षक और विभिन्न रोगों तथा सब प्रकारके शोथ एवं साँप - बिच्छु आदि के विष की चिकित्सा करने में दक्ष वैद्य नियुक्त किये गये हैं।

क्रमश:

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