भारतीय गृहके केन्द्रमें स्त्री प्रतिष्ठित है
गृहस्थ के सामाजिक , आर्थिक एवं नैतिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह कुटुम्ब के सब सदस्य संयुक्त रूप से करते हैं। परन्तु भारतीय सभ्यता में स्त्री गृह एवं कुटुम्ब के केन्द्र पर स्थित है। महाभारत में कहा गया है कि गृहिणी ही गृह है। वेद में कहा गया है कि स्त्री गृह की साम्राज्ञी है।
मनु का विधान है कि गृह का प्रारम्भ विवाह से होता है और स्वयं भोजन करने से पूर्व सृष्टि के सब भावों के लिये सम्यक् भागांश निकालने के गृहस्थ के प्राथमिक कर्त्तव्य का पालन पुरुष और पत्नी को मिलकर ही करना होता है। पंचमहायज्ञ के नित्यकर्म का सम्पादन दम्पति मिलकर ही करते हैं। महाभारत के वनपर्व में द्रौपदी इन्द्रप्रस्थ के राजगृह में अपनी दिनचर्या का वर्णन करते हुए भारतीय गृह में स्त्री को केन्द्रीय भूमिका एवं उत्तरदायित्व का विशद चित्र प्रस्तुत करती हैं। गृह में स्त्री का यह उच्च स्थान दीर्घकाल तक प्रतिष्ठित रहा है।
उन्नीसवीं ईसवी शताब्दी के तंजावुर राज्य के एक अभिलेख में वहाँ के राजगृह की राज्ञियों द्वारा अनेक लोगों के भोजन को व्यवस्था करने का वर्णन हुआ है। इस वर्णन में तंजावुर की राज्ञियाँ महाभारत की द्रौपदी जैसी ही भूमिका एवं उत्तरदायित्व का निर्वाह करती दिखती हैं। आज भी भारत की स्त्रियाँ अपने कुटुम्ब के सामाजिक, आर्थिक एवं नैतिक हित का सम्पादन करने के प्राथमिक उत्तरदायित्व का समुचित निर्वाह प्रयासपूर्वक कर रही हैं।
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